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कविता
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि ।
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि ।नन्द गाँव बरसानो हिलि मिलि गावत इत उत रस की गारि ।
रसिक बिहारी
कविता
ये बाँसुरिया वारे ऐसो जिन बतरायरे ।
ये बाँसुरिया वारे ऐसो जिन बतरायरे ।यों बोलिये, अरे घर बसे लाजनि दबि गई हायरे ।
रसिक बिहारी
कविता
धीरे झूलो री राधा प्यारी जी ।
धीरे झूलो री राधा प्यारी जी ।नवल रंगीली सबै झुलावत गावत सखियाँ सारी जी ।
रसिक बिहारी
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कविता
रत नारी हों प्यारी अखड़ियाँ ।
रत नारी हों प्यारी अंखड़ियाँ ।प्रेम छकी रस-बस अलसाणी जाणि कमल की पांखड़ियाँ ।
रसिक बिहारी
शे'र
नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता हैनिकल ऐ जान तू ही वो नहीं घर से निकलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इल्म है कुछहक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इ’ल्म है कुछहक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
वही इंसान है 'एहसाँ' कि जिसे इल्म है कुछहक़ ये है बाप से अफ़्ज़ूँ रहे उस्ताद का हक़
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
जिन से कि हो मरबूत वही तुम को है मैमूनइंसान की सोहबत तुम्हें दरकार कहाँ है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
किसी का साथ सोना याद आता है तो रोता हूँमिरे अश्कों की शिद्दत से सदा गुल-तकिया गलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता हैनिकल ऐ जान तू ही वो नहीं घर से निकलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
महफ़िल इ’श्क़ में जो यार उठे और बैठेहै वो मलका कि सुबुक-बार उठे और बैठे